अंतिमा शर्मा शोधार्थी (इतिहास विभाग) पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय कटराथल, सीकर (राजस्थान) भारत | डॉ. संजीव कुमार सहायक आचार्य राजकीय महिला महाविद्यालय झुन्झुनूं (राजस्थान) भारत |
शोध सारांश
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज उसके समस्त क्रियाओं का केंद्र है, भारतीय समाज विविधता में एकता से भरा हुआ है जिसकी ग्रहणशीलता और अनुकूलता निरंतर बनी हुई है। भारतीय समाज की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सहिष्णुता व लचीलापन है जो आध्यात्मिकता में भौतिकता का अनूठा समन्वय है। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था प्राचीनता व स्थायित्व के साथ विकास का अनुपम उदाहरण है जो मिश्रित प्रकृति की अर्थव्यवस्था है जहां सेवा क्षेत्र, कृषि क्षेत्र व उद्योग क्षेत्र अपनी भागीदारी रखते हैंl जो बहुआयामी समस्याओं जैसे- गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा का सामना करते हुए विकास व राष्ट्र निर्माण में लगा हुआ है इसका अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं की स्वतंत्रता के पश्चात से वर्तमान तक अपने औपनिवेशिक देश को भी कड़ी टक्कर दे रहा है। इसी के साथ भारत का विकास पर्यावरण पर कम दबाव उत्पन्न करता है जो सतत विकास की आधारशिला है सतत विकास एक सामूहिक जिम्मेदारी है अपनी आने वाली पीढियां के लिए एक रहने योग्य पर्यावरण सुपुर्दगी की, पर्यावरण व उसमें उपलब्ध संसाधन किसी व्यक्ति, राज्य, देश की निजी संपत्ति नहीं है अपितु संपूर्ण मानवता की सांझी धरोहर है। विकास कार्य व आधुनिकता के दौर में उपलब्ध साधनों का प्रयोग करना आवश्यक है परंतु लगातार विकास की कीमत पर दीर्घकालिक हेतु पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना कोई उचित उदाहरण नहीं है। अतः हमें हमारी पारंपरिक तकनीकों व जीवन पद्धति का वर्तमान समय के साथ सामंजस्य बैठाना जरूरी है, जिसका अनुपम उदाहरण शेखावाटी के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में है इस शोध पत्र में हम जानकारी प्राप्त करेंगे कि किस प्रकार सतत विकास समय की आवश्यकता है व शेखावाटी की संस्कृति व धरोहर ऐतिहासिक काल से ही इस सतत विकास की अवधारणा को चरितार्थ करती आयी है।