पुष्पेन्द्र कुमार कुशवाहा – मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति में दण्ड व्यवस्था का समीक्षात्मक अध्ययन – Abstract

शोध सारांश

प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथ केवल धर्म और आध्यात्म तक ही सीमित नहीं थे वरन् धर्म, राजनीति, न्याय, समाज और अर्थनीति सभी को संचालित करता था, इसलिए धर्मग्रंथों में राजनीति, न्याय, सामाजिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था आदि सभी का विस्तृत वर्णन मिलता है। स्मृति ग्रंथों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति में न्याय व्यवस्था की विस्तत व्याख्या मिलती है। इन स्मृति ग्रंथों में दण्ड व्यवस्था के अठारह पद प्राप्त होते हैं जिनमें सभी प्रकार के संभावित विवादों को स्थान दिया गया है और उनके अनुसार दंड का विधान किया है। मनुस्मृति विश्व की सबले प्राचीन दण्ड संहिता या न्याय संहिता मानी जाती है। मनुस्मृति में दण्ड का विधान अधिक कठोर और वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित है। इसके अनुसार समाज का जो वर्ग जितना अधिक जिम्मेदार है यदि वह अपराध करता है तो उसके लिए उतना ही अधिक कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। मनुस्मृति के अनुसार एक साधारण व्यक्ति की अपेक्षा एक ब्राहमण के लिए दंड का विधान एक हजार गुना अधिक होना चाहिए क्योंकि वह समाज का एक आदर्श व्यक्ति है। दोनों स्मृतियों में प्रमुख अपराधों- यथा चोरी, हत्या, व्यभिचार, झूठी गवाही आदि के लिए निर्धारित दण्ड एवं न्याय व्यवस्था का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है।

error: Content is protected !!
Scroll to Top