शेखावाटी की संस्कृति व धरोहर संधारणीय प्रगति का आधार

अंतिमा शर्मा
शोधार्थी (इतिहास विभाग)
पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय
कटराथल, सीकर (राजस्थान) भारत
डॉ. संजीव कुमार
सहायक आचार्य
राजकीय महिला महाविद्यालय
झुन्झुनूं (राजस्थान) भारत

शोध सारांश

बीज शब्द- शेखावाटी, सतत विकास, सामाजिक–आर्थिक, परिदृश्य, संसाधन, विकास, जागरूकता, पर्यावरण संरक्षण।

प्रस्तावना

हड़प्पा सभ्यता से लेकर वर्तमान तक प्रकृति पूजन भारतीय संस्कृति मैं उत्तरोत्तर जीवित परंपरा रही है, प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर चलना संपूर्ण भारतीय संस्कृति का सार रहा है जैसे यहा नदी को देवी वहीं पेड़ पौधों को देवताओं के समान समझा जाता है। सतत विकास जैसी अवधारणा भारतीय समाज  व अर्थव्यवस्था की जड़ रहा है उसी का सबसे बड़ा उदाहरण हमें देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में देखने को मिलता है की किस प्रकार यहां का समाज प्राणों से भी ऊपर प्रकृति को रखता है जैसे कि नाम से ही विदित है राजस्थान वीरों की धरती है यहां के कण-कण में शौर्य व पराक्रम की गाथा समाहित है जो आने वाली पीढ़ियों की प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी। यहां की माताएं अपने पुत्रों को शैशवावस्था में ही प्रकृति के प्रेम व निज भूमि रक्षण की बात सिखाती हैं – “इला न देणी आपणी, हालरियो हुलराय,  पुत सिखावे पालणे मरण बढ़ाई माय”। यहां की सामाजिक पृष्ठभूमि में ही प्रकृति प्रेम है जिसका जीवंत उदाहरण हमें बिश्नोई समाज के उस महान प्रकृति प्रेम व बलिदान में देखने को मिलता है जिसका नेतृत्व “अमृता देवी बिश्नोई” ने किया, यह दुनिया का सबसे विरला उदाहरण है जहां लोगों ने पेड़ों हेतु सर्वोच्च बलिदान भी गर्व से दे दिया, जो गुरु “जाम्भोजी जी” की वाणी – “सिर साठे रूख रहे तो भी सस्तो जाण”  के आत्मसातीकरण का अद्भुत जीवंत दृश्य है। यहां के साधु-संतों ने पशु–पक्षियों, पेड़ों हेतु अनेकों बार स्वयं का बलिदान देकर भी प्रकृति रक्षा के उदाहरण अपनी आने वाली पीढियां को सिखायें हैं। इसी महान धारा का एक अभिन्न हिस्सा शेखावाटी क्षेत्र है जो विशालकाय मरुस्थल के पूर्वोत्तरी अंचल में फैला हुआ है। इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पांच शताब्दियों में इस भूभाग पर प्रशासन करने वाले ‘शेखावत’ क्षत्रियों के नाम पर पड़ा है, इसके संस्थापक ‘महाराव शेखा’ जी थे। वर्तमान में इसमें तीन प्रमुख जिले – सीकर, झुंझुनू व चूरू आते हैं। शेखावाटी का सामाजिक आर्थिक परिदृश्य सतत विकास की अवधारणा का चरितार्थ रूप है, इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषता यहां के जन-जीवन की सरलता है जो प्रकृति पर न्यून दबाव उत्पन्न करती है जो प्रकृति व व्यक्ति के समागम से चलने पर विश्वास करती है क्योंकि प्रकृति व व्यक्ति का तालमेल हमारे अस्तित्व की निरंतरता का आधार है  इस क्षेत्र के खानपान से लेकर पहनावे तक इस प्रकार व्यवस्थित है कि वह संसाधनों के उपयोग पर केंद्रित है ना कि उनके दोहन पर। शेखावाटी के सामाजिक परिदृश्य में हमें भारतीय विभिन्नता में एकता के दर्शन होते हैं यहां सभी धर्मो, वर्गों,जातियों के मध्य आपसी प्रेम शताब्दियों से बना हुआ है। इस क्षेत्र की महिलाएं न सिर्फ क्षेत्र विशेष में अपितु राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त भूमिका निभाती है, यह क्षेत्र मेलो व त्यौहारों का अनुपम संगम स्थल है। शेखावाटी की सांस्कृतिक गतिविधियां जैसे – लोकगीत, लोक नृत्य, त्योहार व अन्य संस्कार इस प्रकार मनाए जाते हैं जो प्रकृति संरक्षण का व धरोहर के संवर्धन का संदेश प्रचारित करते है। इसी के साथ शेखावाटी क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियां भी प्रकृति के साथ सातत्य बनाकर चलने पर विश्वास रखने वाली है। यह क्षेत्र मुख्यतः कृषि, पशुपालन कार्यों में लिप्त रहा है, जहां कृषि मुख्यतः वर्षा पर निर्भर रहती है । इस क्षेत्र में सेवा क्षेत्र भी अत्यधिक प्रगति पर है जिसका एक प्रमुख क्षेत्र पर्यटन भी है इस क्षेत्र में पर्यटन के मुख्य आकर्षण यहां की धरोहर की अधिकता, विरासती समृद्धता रहे हैं। यह जानकारी देने का मुख्य कारण यह समझाना है कि किस प्रकार यहां की अर्थव्यवस्था संसाधनों का दोहन अविवेकपूर्ण तरीके से नहीं करती अपितु उचित रूप से करती है। इस क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध तांबे की खदानें हैं जो यहां की खनिज संपदा की समृद्धता को बयां करती है। इस खंड में हम विस्तार पूर्वक यह अध्ययन करेंगे कि किस प्रकार वर्षों से शेखावाटी की सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि सतत विकास के क्षेत्र में कार्य कर रही है जो यहां की पीढ़ियों में संचित परंपराओं में समाहित है, जिसके उत्तरोत्तर निर्वहन से समाज सतत विकास की चुनौतियों का उचित समाधान प्राप्त कर सकता है।

(क) शेखावाटी का सामाजिक परिदृश्य समाज व्यक्तियों का एक साथ रहने वाला ऐसा समूह है जिसमें परस्पर निर्भरता, अन्तर्संबंध और प्रतिस्पर्धा के साथ ही सहयोग व समन्वय की भावना होती है तथा निश्चित सामाजिक नियमों व परंपराओं के नियंत्रण में अपने व्यवहार एवं संबंधों को नियंत्रित एवं संचालित करता है समाज कहलाता है।

शेखावाटी के समाज ने गणेश्वर से लेकर ग्लोबलाइजेशन तक विकास, विनाश व पुनर्विकास का एक लंबा अनुभव प्राप्त किया है,जिसने इसके प्रत्येक सामाजिक पक्ष को प्रभावित किया है फिर भी अपने अस्तित्व की मूल सुगंध बरकरार रखी है तथा सतत्तता का उचित उदाहरण प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है-

  • धार्मिक विभिन्नताएं प्रकृति पूजा से शुरू हुआ सफर कालांतर में विभिन्न मतों, पंथो,मान्यताओं में  बटंता रहा वर्तमान स्वरूप में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध आदि रूपों में विद्यमान है। सभी का सार तत्व मानवता का रक्षण व जीवन जीने की उचित पद्धति सीखना है। शेखावाटी  इस क्षेत्र में अत्यंत उन्नत है जहां प्रत्येक वर्ग के लोग शांतिपूर्ण रूप से समरसता के साथ रहते हैं यहां ‘खाटू धाम’ से लेकर ‘नरहड़’ तक श्रद्धा व सबुरी की धारा बहती है।
  • जातिगत विभिन्नता प्रसिद्ध इतिहासकार ‘राधा कुमुद मुखर्जी’ के अनुसार – “भारत को मतो, पंथों, प्रथाओं, संस्कृतियों, धर्मो, भाषाओं, जातियों व सामाजिक संस्थाओं का अजायबघर कहा जा सकता है”।  इस परिभाषा का ही हिस्सा शेखावाटी का समाज है जहां विभिन्न जातियों का समागम दिखाई देता है, जो यहां की प्रमुख सामाजिक विशेषता के रूप में है जिसमें प्रमुख जातियां अपने कार्यों के आधार पर पारस्परिक रूप से जीवन यापन कार्यों में लगी हुई है। यहां जातियों का विभाजन विभिन्न उपजातियां में है इस बहुविभाजन के बावजूद विविधता के साथ एकीकरण का तत्व है यद्यपि सभी में प्रक्रियात्मक स्तर पर भिन्नता है किंतु प्रकृति व मूलभूत तत्वों में एकरूपता है समस्त लोग एक दूसरे पर निर्भर हैं जो सामाजिक गतिशीलता को संभव बनाता है।
  • परिवार परिवार समाज का एक छोटा एवं उप सामाजिक समूह होता है, जो बच्चे की प्रथम पाठशाला होता है अर्थात किसी भी व्यक्ति के जीवन के संस्कारों की प्रदायगी परिवार द्वारा होती है। शेखावाटी क्षेत्र में परंपरागत रूप से संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित रही है परंतु वर्तमान पाश्चात्य प्रभाव से तथा आर्थिक लाभ अर्जन में यह परंपरा सर्वाधिक प्रभावित हुई है। एकल परिवार प्रणाली निरंतर बनती जा रही है जिससे सतत विकास का क्रम बाधित होता है तथा संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है इसका एक प्रमुख पहलू ‘वृद्धजन’ उपेक्षा के रूप में सामने आ रहा है जो बढ़ते वृद्ध आश्रम में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। जिस समाज में वृद्धजन बाबोसा, दादाजी जैसे लोग ज्ञान के केन्द्र व अनुभवों के स्तोत हुआ करते है वही आज एक पारिवारिक बोझ की धारणा बनना अत्यंत निंदनीय है, वृद्धो का सम्मान करना, स्नेह करना, रक्षण करना हमारी अनूठी परम्परा रही है इस ओर विशेष ध्यान युवा पीढ़ी हेतु समय की आवश्यकता है।
  • महिलाएं- शेखावाटी क्षेत्र भी हमारे महान भारतीय परंपरा के इस आधार का अनुपालन करती है जहां माना जाता है की – “यत्र नारयस्तु पूजयते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वासत् त्रफला: क्रियाः”। अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां नारियों की पूजा नहीं होती है वहां समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं। शेखावाटी क्षेत्र नारियों के सौम्य स्वभाव के साथ ही स्त्रियों की कठोर जीजीविषा व अधिकार चेतना के लिए जाना जाता है। जैसा की देखा जाता है की अनेकों महिला संगठनों द्वारा मुख्यतः पुरुषों द्वारा ही महिलाओं के विषयों पर आवाज उठाई जाती है, परंतु शेखावाटी ही वह स्थान है जहां आज से 90 वर्ष पूर्व देश में पहली बार महिलाओं के मामलों पर महिलाओं द्वारा स्वयं आवाज उठाई गई जब माँ किशोरी देवी के नेतृत्व में 10000 महिलाओं का एक सम्मेलन अप्रैल 1934 में कटराथल(सीकर) में आयोजित हुआ था, जिसकी गूंज पूरे देश ने सुनी थी उसी परंपरा के आज भी दर्शन  हमें देखने को प्राप्त होते है जब शेखावाटी के ‘झुंझुनू’ जिले के ‘उदयपुरवाटी’ कस्बे के ‘पापड़ा गांव’ की बेटी मोहना सिंह स्वदेशी LCAतेजस फाइटर जेट का संचालन करने वाली देश की पहली महिला फाइटर पायलट बन उड़ान भरती है।
  • खान पान- शेखावाटी प्रदेश एक गर्म अर्ध शुष्क जलवायु क्षेत्र है जहां अधिकतर कृषि कार्य वर्षा पर निर्भर करता है तथा उसी के अनुरूप यहां के लोगों का खान-पान है इस क्षेत्र के मुख्य खाद्यान्न पारम्परिक रूप से बाजरे के उत्पाद्, जौ, गेहूँ के रूप में थे उदाहरणतः बाजरे की रोटी, मोठ बाजरे की खीचड़ी, खाटे की राबड़ी, काचरे की चटनी, कैर सांगरी का साग, मीठे में– गुड़ की लापसी,खरीटी के लड्डू, मैथी के लड्डू, ग्वारपाठे के लड्डू, शरबत में- बील का शरबत , पुदीने का शरबत प्रमुखतः है। अर्थात यहां का खानपान कम वर्षा व शुष्क क्षेत्र में आसानी से उत्पादित होने वाला है। यह खानपान मोटे अनाज आधारित है जो शरीर को पोषक तत्वों से भरपूर पोषण व निरोगता प्रदान करता है, आज इसी खान-पान की चर्चा संपूर्ण विश्व कर रहा है क्योंकि बढ़ता मरुस्थलीकरण व जनसंख्या दबाव भोजन की आवश्यकता पूर्ति का मार्ग ढूंढ रहा है। इसी हेतु वर्ष 2023 को मोटे अनाज का वर्ष UN द्वारा घोषित किया गया था अतऐव शेखावाटी की परंपरा सतत खान-पान की प्रचारक सदैव से ही रही है।
  • वेशभूषा शेखावाटी अंचल का पहनावा अनूठा है यहां की महिलाएं लहंगा, लुगड़ी, काँचली कुर्ती पहनती हैं,वहीं पुरुषों द्वारा धोती – कुर्ता तथा साफा पहना जाता है। उदाहरणतः –“स्वामी विवेकानंद जी” द्वारा पहने जाने वाला साफा शेखावाटी की पहचान रही है। हालांकि वर्तमान में वैश्वीकरण व पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पहनावे पर भी दिखाई दे रहा है इस नवीन पहनावे के चलते लगातार कपड़ों के वैविध्यकरण से प्राकृतिक दोहन बढ़ता जा रहा है अतः पारंपरिक परिधान को पोषण देकर हम प्रकृति के साथ तारतम्यता बनाए रख सकते हैं।
  • मैले व त्यौहार शेखावाटी क्षेत्र की अमूल्य धरोहर के वाहक यहां के मेले व त्यौहार है। जो स्थानीयता के महत्व का एक प्रमुख उत्सव स्थल है, इन कार्यक्रमों द्वारा प्रदेश की परंपराओं का संचरण लगातार युवा पीढ़ी में किया जाता रहा है ताकि वह यह सीख सके की प्रकृति के साथ संरक्षण द्वारा ही हमारा भविष्य रक्षित हो सकता है अन्यथा अंधी आधुनिकता की दौड़ विनाश के द्वार पर ले जाती है। यह मेले समाज में जन आस्था के साथ-साथ एकता का भाव दर्शाते हैं उदाहरण – ‘खाटू श्याम जी’ का मेला, ‘फतेहपुर उर्स’, ‘जीण माता’ मेला, ‘नरहड़ पीर’ का मेला इत्यादि।
  • लोकगीत व लोक नृत्य इनके द्वारा शेखावाटी प्रदेश में प्रकृति रक्षा का संदेश जन-जन तक पहुंचाया जाता है जैसे नुक्कड़ नाटक, प्रभात फेरी द्वारा जनजीवन में प्रकृति व मनुष्य के आपसी संबंध व निर्भरता का प्रचार किया जाता है।
  • संत परंपरा- संतों की तपोभूमि शेखावाटी में विभिन्न संतों द्वारा पशु–पक्षी, जल, भुमि रक्षण के अनेकों संदेश प्रचारित किए गए हैं उदाहरण के रूप मेंइसी पुण्य धरा पर ‘रेवासा धाम’, ‘श्रद्धा नाथ जी’ का आश्रम लक्ष्मणगढ़, ‘बऊधाम’ आश्रम जैसे स्थलों से प्रकृति परीरक्षण व सतत विकास पर जोर देने का कार्य लगातार जारी है जो इस क्षेत्र में नैतिक दबाव उत्पन्न करता है तथा निवासी प्रकृति को मां समान पूजनीय मानकर उसका रक्षण करते हैं।

(ख) शेखावाटी का आर्थिक परिदृश्य शेखावाटी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार यहां की कृषि ( वर्षा व न्यून सिंचाई) व पशुपालन है तथा साथ ही इस क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु व मध्यम ( MSME) की अधिकता है यहां बड़े भारी उद्योगों का अभाव है इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के साधन सतत विकास व जीवन यापन का अद्भुत मेल है जिसका वर्णन इस प्रकार है-

  • सेवा क्षेत्र इस क्षेत्र में अर्थव्यवस्था के हिसाब से सबसे अधिक उपयोगी क्षेत्र ‘पर्यटन’ है जो संपूर्ण सेवा क्षेत्र की रीड है। शेखावाटी के मंडावा, बिसाऊ, झुंझुनू, नवलगढ़, रामगढ़ शेखावाटी, लक्ष्मणगढ़, फतेहपुर जैसे स्थानों पर ऐतिहासिक पर्यटन व वही खाटू श्याम जी, हर्ष, रेवासा, नरहड़, फतेहपुर में धार्मिक पर्यटन मुख्यतः होता है जो की संपूर्ण क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है जो परिवहन साधनों से लेकर फूल, प्रसाद की रेहड़ी लगाने वालों के रोजगार का साधन है वहीं इससे होटल व्यवसाय का संचालन व आय उत्पादन का प्रमुख केंद्र भी है। समस्त पर्यटन क्रियाएं राजस्व प्राप्ति के स्रोत होते हैं जिसमें पर्यटकों के निवास, भोजन, परिवहन,ऐतिहासिक स्थलों में प्रवेशशुल्क , स्थानीय कारीगरों द्वारा निर्मित उत्पादों की खरीदारी पर किए गए व्यय समग्र राजस्व प्राप्ति में योगदान देते हैं।
  • कृषि शेखावाटी में वर्षा आधारित फसलों का मुख्यतः उत्पादन होता है उदाहरणार्थ – बाजरा, मोठ, मूँग, ग्वार, तिल, जौ, चना जो भूमिगत जल का निम्नतम दोहन करते हैं तथा मिट्टी की उर्वरकता बनाए रखते हैं जो उसकी दीर्घकालीन उपयोगिता हेतु आवश्यक है यह कृषि कार्य सतत विकास के आधार है जहां कम वर्षा में विपरीत पर्यावरणीय स्थिति के बावजूद उत्पादकता की जाती है।
  • उद्योग शेखावाटी क्षेत्र में मूलतः सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग( MSME) अत्यधिक है। जैसे – खंडेला का गोटा पत्ती उद्योग, लोहागर्ल व चिराना का अचार उद्योग,चिड़ावा में नवलगढ़ की मिठाइयों का कार्य विश्व प्रसिद्ध है।
  • व्यापार तांबा इस क्षेत्र की अमूल्य प्राकृतिक संपदा है जो कि हमें हड़प्पा काल से लेकर वर्तमान तक प्राप्त होती है यहां की खेतड़ी, सिंघाना की तांबा की खान गणेश्वर से लेकर वर्तमान तक व्यापार का प्रमुख केंद्र रही है।
  • ऊर्जा संसाधन ऊर्जा का उत्पादन वर्तमान में सबसे अधिक CO2 के उत्सर्जन व कोयले के दहन का आधार है, परिणामस्वरूप CO2 की मात्रा का बढ़ना जो की लगातार जारी है जलवायु परिवर्तन हेतु जिम्मेदार प्रमुख कारक है जिसका समाधान है नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के प्रयोग पर ध्यान देना :

पवन ऊर्जा- इस क्षेत्र में पवन ऊर्जा के अत्यधिक स्रोत हैं, जहां से हम नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं उदाहरणार्थ हर्ष पर्वत पर पवन चक्कियों द्वारा उत्पादित पवन ऊर्जा।

सौर ऊर्जा- शेखावाटी की गर्म उष्ण जलवायु के कारण इस क्षेत्र में वर्ष पर्यंत उचित सूर्य प्रकाश उपलब्ध रहता है जो सौर ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है यहां के लोगों द्वारा इसका प्रयोग सतत विकास का उदाहरण है जहां घरों की छतो से लेकर खेतों में बड़े-बड़े सौर ऊर्जा प्लाटों का दृश्य क्षेत्र में आम घटना बनती जा रही है।

यूरेनियम- शेखावाटी प्रदेश भविष्य का ईंधन कहे जाने वाले तत्व यूरेनियम का एक बड़ा भंडार है जिसका प्रमुख भंडारण हमें हाल ही में ‘रोहिल’ व ‘खंडेला’ सीकर में 15000 टन यूरेनियम के भंडार प्राप्त हुए है, जो ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में नवीन सूर्योदय के समान है।

इन सभी आर्थिक क्रियोओं द्वारा आए उत्पन्न भी होती है परंतु किसी भी प्रकार से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ व ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता को नहीं बढ़ाया जाता है जो कि इस प्रकृति की सबसे बड़ी सेवा है। बढ़ते पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के दौर में शेखावाटी के यह आर्थिक कार्य जलवायु के साथी है विरोधी नहीं है इनका प्राकृतिक दबाव न्यूनतम है जो सतत विकास का आधार है।

(ग) सतत विकास पर ध्यान देना अति आवश्यक क्यों?–

इसका प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन को रोकना व पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने से रोकना है 1992 में हुए ‘पृथ्वी सम्मेलन’ से सतत विकास कार्यों पर वैश्विक समुदाय द्वारा लगातार प्रयास में जागरूकता कार्य किया जा रहे हैं परंतु पिछले 10 वर्षों से इन जलवायु परिवर्तनों की परिघटना में तीव्र बदलाव आ रहे हैं जहां मानसून समय पर न आना व न जाना,  वर्षा जल की शुद्धता व प्रभावित हुई है। वही गर्मियां अपनी शताब्दियों में सबसे भीषण रूप लेती जा रही है, दूसरी ओर सर्दियों के मौसम में परिवर्तन लगातार दृष्टिगोचर हो रहे है जो की संपूर्ण पृथ्वी के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है इसका एक उदाहरण हम समुद्री जीवन से ले सकते हैं जैसे – समुद्र में प्रवाल विरंजन सामान्य घटना बनती जा रही है प्रवालों की स्थिति समुद्री पारिस्थितिकी स्वास्थय का आईना होता है ,  वही ग्लेशियर पिघलने से समुद्री जल स्तर बढ़ता जा रहा है जिस 2डिग्री तापमान की हम बात कर रहे हैं उस तक बढ़ने से कई समुद्री देश जलमग्न हो जाएंगे जैसे- मालदीव, सेसेल्स इत्यादि वही हमारे  लक्षदीप व अण्डमान निकोबार जैसे दीप समूह भी जलमग्न हो जाएंगे विश्व की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार कहलाने वाले शहर जैसे-  लंदन, न्यूयॉर्क,  पेरिस, मुंबई, बीजिंग इत्यादि इसी समस्या का सामना करेंगे। जलवायु परिवर्तन को रोकने का एकमात्र उपाय सतत् व समावेशी विकास है जो पर्यावरण से प्रतिस्पर्धा नहीं अपितु सहचर्य का भाव रखना है।

(घ) सतत विकास व शेखावाटी ऊपर हमने सतत विकास की उपयोगिता व महत्व पर बात की की किस प्रकार जलवायु परिवर्तन रोकने हेतु सतत विकास आवश्यक है उसी का वास्तविक चित्र हमें शेखावाटी में प्राप्त होता है। इस क्षेत्र ने ‘गणेश्वर’ सभ्यता से लेकर वर्तमान ‘ग्लोबलाइजेशन’ के दौर तक अपनी उत्तरजीविता का प्रमाण दिया है यहां का समाज उसकी परंपराएं, जीवन जीने की पद्धति अर्थात संस्कारों में प्रकृति रक्षण समाहित है । पेड़ों का महत्व यहां के लोगों की दैनिकता में शामिल है– ‘तुलसी’ से लेकर ‘बरगद’ तक की पूजा करना ‘खेजड़ी’, ‘ बैरे’, ‘कीकर’ और अन्य पेड़ो का संरक्षण करना प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझता है। शेखावाटी के लोग संसाधनों का महत्व कितनी अच्छी तरह से जानते हैं इसका प्रमुख उदाहरण है कि दैनिक उपयोग में आने वाले संसाधन उदाहरणार्थ नमक हमें बाल्यकाल में ही विभिन्न कहानियां द्वारा बच्चों को यह समझा दिया जाता है कि नमक का गिरना अच्छा नहीं होता तब व्यक्ति ताउम्र उसको बड़ी सावधानी से उपयोग करता है, जो संसाधनों के प्रयोग में शेखावाटी के जीवन की महता बताता है। संपूर्ण विश्व में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने व प्रकृति और व्यक्ति के सतत सहयोग से विकास का अनुपम उदाहरण शेखावाटी के रूप में हमें प्रसारित किया जाना आवश्यक है जैसा कि “महात्मा गांधी” द्वारा कहा गया है की “प्रकृति सब की आवश्यकता पूरी कर सकती है परंतु लालच नहीं”।

-परंतु वर्तमान में बढ़ती पश्चात्यता व भूमंडलीकरण का दुष्प्रभाव क्षेत्र की पारंपरिक पद्धति पर भी बढ़ता जा रहा है जिसका अध्ययन हम इन दो केस स्टडी से कर सकते हैं

केस-1 –“ बदलता खान-पान बढ़ता कुपोषण व बीमारियों का दौर”–

जैसा कि हम सबको विदित है शेखावाटी का पारंपरिक खानपान पोषण से भरपूर रहा है जिसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट का उचित संतुलन विद्यमान रहा है परंतु हाल ही में बढ़ते कुपोषण के विषय में मैंने जानना चाहा जिस हेतु सीकर वह उसके आसपास के क्षेत्र में जानकारी प्राप्त की गई जिससे लोगों द्वारा बार- बार यही बताया गया कि यह परिवर्तन 2010 से ज्यादा हुए हैं जहां पोषक भोजन का स्थान मैगी, पिज़्ज़ा, बर्गर, सैंडविच, केक, पेस्ट्री, कोका-कोला, पेप्सी, चिप्स, कुरकुरे, बिस्किट, चॉकलेट ने ले लिया है । एक स्थानीय व्यक्ति अशोक कुमार जी के अनुसार जो की एक 80 वर्ष के व्यक्ति हैं बताया गया कि उनके बच्चों द्वारा इन आधुनिक खाद्य पदार्थों का ज्ञान होना संभव ही नहीं था उनका संपूर्ण जीवन बिना किसी चिकित्सालय में गए गुजर गया वहीं उनकी तीसरी पीढ़ी के बच्चों द्वारा इन सब चिप्स, कुरकुरे, पिज़्ज़ा, पेप्सी के सेवन से जो है स्वास्थ्य और पोषण तत्व में कमी आई है और लगातार उन्हें बार-बार चिकित्सकों को दिखाना पड़ रहा है इससे हम यह समझ सकते हैं कि पारंपरिक खान-पान द्वारा हमने न सिर्फ स्वयं का बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं अपितु प्रकृति का रक्षण भी कर सकते हैं।

केस-2 – “52 बावड़ियों का शहर खंडेला”?

मैंने साहित्य पढ़ा और पाया कि खंडेला को 52 बावड़ियों का शहर कहा जाता है परंतु जब देखा तो पाया कि उन बावड़ियों की दशा अत्यंत दयनीय है जिनमें अंदर जाने का रास्ता लगभग अवरुद्ध हुआ है व एक बड़े कूड़ेदान के समान नजर आ रहे हैं, वह खंडेला कस्बा जहां कभी ‘कांतली नदी’ बहा करती थी, जो 52 बावड़ियों के शहर के नाम से मशहूर था, उसी खंडेला के लोग आज पेयजल की समस्या के कारण पलायन कर रहे हैं यह एकमात्र उदाहरण नहीं है जहां हमारे परंपरागत स्रोतों की उपेक्षा आपदा का कारण बनी हुई है।

उपर्युक्त दोनों केस स्टडी से हमें यह समझना होगा कि हम किस आधुनिकता की अंधी दौड़ में जा रहे हैं जहां विश्व की समस्याओं का समाधान प्रदान करने वाली तकनीक हमारे पास है वही हम खुद समस्या क्यों बन रहे हैं ? इस विषय पर विचार करना जरूरी है अब आवश्यकता है कि हम अपनी “प्रकृति की ओर लोटे  अपनी माटी शेखावाटी की ओर लौटे”।

सतत विकास की ओर बढ़ते कदम– निम्न उपाय किए जा सकते हैं –

सामाजिक जागरूकता सतत विकास की अवधारणा बिना समाज के सामूहिक प्रयासों व जागरूकता से संभव नहीं है प्रकृति का संरक्षण हमारी साझी जिम्मेदारी है, जागरूकता के अभाव में संरक्षण संभव नहीं है तो जागरूकता के प्रयास अति आवश्यक है।

प्रौद्योगिकी का प्रयोग आज का युग तकनीक की तीव्रता का युग है जहां AI, BigData, Neno Technology का प्रसार लगातार बढ़ रहा है इनका प्रयोग प्रकृति संरक्षण में परंपराओं के प्रचार में करना जरूरी है।

सार्वजनिक निजी भागीदारी पर्यावरण संरक्षण व सतत विकास किसी सरकार मात्र की जिम्मेदारी नहीं है ना ही यह सिर्फ सरकारों के प्रयासों से सिद्ध किया जा सकता है इस कार्य में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी आवश्यक है अपनी आने वाली पीढ़ियां को जीवन जीने व स्वयं के विकास हेतु एक सुरक्षित पर्यावरण देना हमारी जिम्मेदारी है।

लोकसंस्कृति का गौरव गान प्रकृति रक्षण को प्राथमिक स्तर पर ही आने वाली पीढियां को समझना होगा गैर जिम्मेदार व प्रकृति शिक्षा के अभाव में बड़ी हुई एक और पीढ़ी पर्यावरण को विनाश के कगार पर खड़ा कर सकती है, अतएव शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण चेतना, जागृति फैलाना आवश्यक है जिसके लिए शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए जिला स्तर पर कई जिलों द्वारा प्राकृतिक पर्यटन भी करवाया जा रहा है जो की एक प्रशंसनीय कदम है।

परंपरा व तकनीक का सामंजस्य देश का विकास आवश्यक है परंतु यह समावेशी व सतत होना चाहिए। हमें आधुनिक तकनीकी युग का हिस्सा बनना है परंतु अपनी परंपराओं को भी जीवित रखना है आधुनिक रेफ्रिजरेटर का प्रयोग करना है परंतु रसोई घर में एक स्थान मिट्टी के मटके का भी होना चाहिए मिक्सर ग्राइंडर प्रयोग करना है साथ ही घर का एक कोना पारंपरिक चक्की हेतु भी रखना है ताकि भावी पीढ़ियां इनका महत्व समझ सके।

निष्कर्ष

वर्षों की गुलामी के बाद विभाजन की त्रासदी के साथ नव उदित राष्ट्र हेतु जो गरीबी, अशिक्षा,असमानता जैसी अनगिनत चुनौतियों से लड़ रहा है उसके लिए विकास कार्यों पर ध्यान देना अपरिहार्य प्राथमिकता रही है जिसमें प्रकृति संरक्षण पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना देना चाहिए आज जब हम विकसित भारत 2047 के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं ऐसे में हमें यह ध्यान देना आवश्यक है कि हम न सिर्फ तीव्र विकास करें अपितु समावेशी रूप से सतत विकास करें,  हमें हमारी प्रकृति का संरक्षण करना है जो हमारा अतीत हमें सिखाता है, यद्यपि वर्तमान जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि व प्रदूषण का प्रमुख कारण विकसित देशों द्वारा औद्योगिक क्रांति से लेकर वर्तमान तक किए गए संसाधनों के अत्यधिक दोहन व कार्बन उत्सर्जन( co 2 ) है जिसके विकसित देशों द्वारा किए गए अविवेक पूर्ण दोहन का हिस्सा सर्वाधिक है वर्तमान संपूर्ण वैश्विक समुदाय द्वारा पेरिस समझौते के अनुसार  NDC जारी किए जा रहे हैं ऐसे में भारत द्वारा अपनी जिम्मेदारी समझते हुए 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन देश बनने का लक्ष्य रखा गया है जिसकी पूर्ति प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है अतः इसी महायज्ञ में हम अपनी विरासती ज्ञान के आधार पर शेखावाटी की परंपराओं को अपनाकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं । इस शोध पत्र में हमने शेखावाटी क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि का विकास के साथ तारतम्य देखा है उसको मात्र विचारो तक सीमित नहीं रखना अपितु संविधान के अनुच्छेद 48 A का व्यक्तिगत व सामाजिक रूप से संपूर्ण क्षमता से हमें निर्वहन करना है तथा अपनी प्रकृति का न सिर्फ संरक्षण करना है अपितु उसे संवर्धित रूप से अपनी भावी पीढ़ियों को सुपुर्द करना है। प्रत्येक नागरिक को यह जिम्मेदारी समझनी होगी  कि सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें स्व से सर्व की अवधारणा पर बल देना होगा – “राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त” की इन पंक्तियों पर विचार करना होगा कि –“हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी, आओ विचारें आज मिलकर, ये समस्याएँ सभी”

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची-

  1. शर्मा, गोपीनाथ: 1990,राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास, राजास्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी,जयपुर ।
  2. मील, डॉ. महेन्द्र: 2015,राजस्थानी लोकनाट्य और शेखावाटी ख्याल, सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर ।
  3. शेखावत, सुरजन सिहः1989, शेखावाटी प्रदेश का प्राचीन इतिहास, सुरजन सिंह शेखावत स्मृति संस्थान प्रकाशन, झाझड़, झुंझुनू ।
  4. शेखावत, सौभाग्य सिंह: 1991, शेखावाटी केवीर गीत, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान , जोधपुर ।
  5. Cooper , Ilay  : Rajasthan exploring “the painted town of Shekhawati” प्रकाश बुक डिपो।
  6. मिश्र, रत्नलाल: 1998, शेखावाटी का नवीन इतिहास, B.R. Publication
  7. व्यास, हेतप्रकाश: 24 सितम्बर 2006, आबाद हुई हवेलियां, रविवारिय, राजस्थान पत्रिका
  8. भारद्वाज, विनोद: 20 अक्टूम्बर, 2015: मरुधरा का गौरव शेखावाटी, राजस्थान सुजस ।
  9. 4 अक्टूबर, 2024: दैनिक भास्कर, चित्तौड़गढ़ अंक
  10. गुप्त, मैथिलीशरण: भारत-भारती
  11. www.bharatdiscovery.org
  12. www.m.bhaskar.com
error: Content is protected !!
Scroll to Top