सरिता पटेल (शोधार्थी) – छत्तीसगढ़ के लोक अनुष्ठानों एवं लोक जीवन में राम

शोध सारांश

भगवान राम भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। भारतीय समाज, सभ्यता, मूल्य और आर्दश भागवान राम के आदर्शों से निर्मित है। समाज का प्रत्येक वर्ग, जाति, समुदाय राम के आदर्शों से गहराई से प्रभावित है।

छत्तीसगढ़ी समाज और संस्कृति में राम भावनात्मक, सांस्कृतिक, नैतिक और धार्मिक रूप से प्रतिष्ठित है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास में से लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ और आस-पास के क्षेत्र में व्यतीत किया था, इसलिए ग्रामीण और लोक जनजीवन में रामकथा लोकगीतों, लोक कथाओं, लोकनाट्‌यों जैसे पंड‌वानी, चौपाई और रामलीला में साकार रूप में देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ी लोगों में राम इस तरह से समाये हुए हैं कि यहाँ के रामनामी सम्प्रदाय के लोग तो अपने पूरे शरीर पर राम नाम का गोदना गुद‌वाते हैं।

छत्तीसगढ़ के लोक अनुष्ठानों यथा- जन्म, मृत्यु, विवाह आदि अवसरों पर राम के भजन, गीत इत्यादि खूब प्रचलित हैं। भगवान राम छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में लोक आस्था के प्रस्थान बिन्दु और लोक संस्कृति, लोक मानस की चेतना का अभिन्न अंग है। सामाजिक जीवन में राम की व्यापक उपस्थिति को दर्शाने वाले लोक रीति-रिवाज, लोक पर्व और उत्सव, लोक विश्वास, लोक आदर्श छत्तीस गढ़ की संस्कृति को राममय बनाने के साथ-साथ इसे विशिष्ट पहचान भी दिलवाते हैं।

बीज शब्द-

अनुष्ठान, लोकजीवन, लोक पर्व, लोक संस्कृति, पंडवानी, नाचा।

’’सिया राम मय सब जग जानी,

करहूँ प्रणाम जोरि जुग पानी।’’

कहकर तुलसीदास जी ने राम की सर्वव्यापकता को सामने रखा है। वास्तव में राम नाम की महिमा इतनी व्यापक है कि इसे किसी पूर्ण निर्धारित व निष्चित सीमा रेखा के भीतर बाँधा नहीं जा सकता। मर्यादा पुरूषोतम श्रीराम भारतीय जन मानस के हृदय के सम्राट हैं। उनका जीवन हर काल के सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। त्रेता युग से लेकर आज के इस आधुनिक युग में भी राम और राम की महिमा एवं मर्यादित छवि पुजनीय है। राम एक पुत्र के रूप में, भाई, सखा तथा पति के साथ-साथ अन्य हर रूप में समाज को एक मर्यादित और कर्त्तव्य परायणता का स्वरूप देते हैं-

’’करोड़ों हिन्दुओं के आस्था का केन्द्र भगवान श्री राम ऐसे महामानव है जिन्होंने सांसारिक ऐश्वर्य त्याग कर सामाजिक मर्यादाओं का पालन करते हुए देष के समस्त दुखी जनों को उनके संकट से मुक्ति दिलाई है।’’1

श्रीराम का जन्म भले ही एक राज परिवार में हुआ हो, किंतु वे बाल्यकाल से ही वनवासी का जीवन जी कर लोकहित में कार्य किये हैं। पहले गुरुकुल फिर विश्वामित्र जी के साथ और फिर चौदह वर्ष का वनवास तो हम सब जानते ही हैं। राम चाहते तो किसी गाँव के बाहर अपना चौहद वर्ष का वनवास काट सकते थे किंतु उन्होंने लोक हित के लिए वन-वन भ्रमण कर अत्याचारियों का अंत किया।

छत्तीसगढ़ के लोक अनुष्ठानों में राम नाम की बड़ी महिमा है। यहाँ लोग सुबह उठते ही राम-राम से दिन की शुरूआत करते हैं। किसी से मिलते हैं तो राम-राम, कोई कार्य आरंभ करंेगे तो राम का नाम, किसी से विदाई लेते हैं तो राम-राम, यहाँ तक की किसी वर-वधु के जोड़े को भी सीता राम की संज्ञा देते है। यहाँ के लोक गीत में राम नाम का स्वर गुंजता है। सोहर, विवाह गीत, डंडा, फाग भोजली, बसदेवा, सुआ, ददरिया आदि अन्य लोक गीतों में राम और राम के नाम बसे हुए है। यहाँ की संस्कृति परंपरा, तीज त्यौहार, हर्ष, पीड़ा, शोक, भय, आश्चर्य आदि में भी अनायास ही राम नाम प्रकट हो जाता है अर्थात् दैनिक जीवन में होने वाले हर कार्य क्षेत्र में राम नाम समाहित है।

वैसे तो छत्तीसगढ़ के जन मानस के हृदय में राम विराजित हैं किंतु माता कौसल्या यहाँ की पुत्री है। तो हमारा दोहरा नाता बन जाता है। ननिहाल होने के कारण यहाँ राम जी भाँजे के रूप में पूजे जाते हैं। तभी तो ’तुलसी मानस भारती’’ में प्रकाशित शोभाकांत झा जी ने अपनी रचना ’’छत्तीसगढ़ में रमें राम’’ में स्पष्ट शब्दों में कहा है-

’’यहाँ भाँजे (भागिनेय) को मामा प्रणाम करता है। यह उलटबासी भाँजा राम से जुड़ी है। जनश्रुति एवं आरंग में स्थित कौसल्या मंदिर जिनकी गोद में राम लला विराजित है, के अनुसार यह दक्षिण कोसल, कौसल्या की जन्म जन्मभूमि रही है। इसलिए राम इस प्रदेष के भाँजे माने जाते हैं। इसलिए यहाँ हर भाँजा रामस्वरूप में पुजनीय प्रणम्य होता है।’’2 अतः राम हमारे इष्ट है इस नाते पुज्य है ही। वे हमारे भाँजे है इस नाते भी पुज्यनीय है।

छत्तीसगढ़ में हर रोज राम की पूजा होती है किंतु राम की विषेष वंदना, उनका ध्यान स्मरण, पाठ आदि के लिए लोगों द्वारा मूख्य रूप से मानस मंडली, साप्ताहिक राम नाम यज्ञ और नवधा रामायण जैसे कार्यक्रमों का भव्य आयोजन किया जाता है। ’मानस’ का पाठ दो तरह से होता है, पहला जन मानस के द्वारा केवल घरों में बैठ कर पाठ किया जाता है और दूसरा सामूहिक तौर पर मानस मंडलियों के द्वारा किया जाता है। जिसमें लोगों के द्वारा विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों के माध्यम से गाया बजाया जाता है। यह ज्यादातर 24 घंटों का होता है। साप्ताहिक राम नाम यज्ञ में गांव के लोगों के द्वारा बारी-बारी से निरंतरता के साथ पूरे सात दिन तक राम का नाम जपा जाता है। यह दिन रात चलने वाला यज्ञ होता है। ’नवधा रामायण’ में सामूहिक तौर पर मानस का पाठ होता है तथा इसके अलावा राम और राम से संबंधित विभिन्न प्रकार के भजन कीर्तन भी होते हैं। नवधा रामायण में भगवान के नौ प्रकार की भक्ति की जाती है। नवधा भक्ति के बारे में छत्तीसगढ़ की माटी की पुत्री शबरी को भगवान राम ने बताया था। इसमें नौ दिन तक अपने भगवान की महिमा का गुणगान कर भजन कीर्तन करते हैं। इन नौ दिनों की भक्ति से भक्त अपने भगवान के और समीप हो जाता है।

छत्तीसगढ़ में रामकथा के षिल्पांकन का बाहुल्य तथा वैविध्य इस बात का द्योतक है कि इस क्षेत्र के साथ भी राम का संबंध बहुत दृढ रहा और उनके चरित की स्मृति यहाँ के जन जीवन में दीर्घकाल तक व्याप्त है। राम कथा गंगा की तरह पवित्र और पावन है, उसका जितना गान करिये मन उतना ही निर्मल होता है। श्री राम प्रेम और मर्यादा के प्रतीक है तो सीता करूणा की मूर्ति। तीनों भाई (भरत, लक्ष्मण, शत्रुहन) कर्तव्य परायण की प्रतिमूर्ति, हनुमान स्वामी भक्त की पराकाष्ठा को प्राप्त है। इस प्रकार रामायण में हर एक पात्र अपने आप में जन मानस के लिए उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है। मानव जीवन के इन्ही मूल्यों को लेकर तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना की है। जिसमें हर एक पात्र एक-दूसरे के प्रति प्रेम, स्नेह, आदर और कर्तव्य को पूर्ण श्रद्धा के साथ निभाता हुये दिखाई देता है। इसलिए ’मानस’ केवल छत्तीसगढ़ में ही नही वरन् संपूर्ण भारत के साथ विदेषों (प्रवासी) में पढ़ी जाती है। इससे जनमानस का जुड़ाव अन्न जल के जैसे दिखाई देता है। राम का चरित्र संपूर्ण जगत को मर्यादा में रह कर जीवन जीना सिखाती है। जब सभी अपने-अपने काम को प्रसन्नचित होकर करते हैं तो स्वतः ही संसार में सुख शांति का प्रसार होता है-

’’राम राज कर सुख संपदा वरनि न सकई फनीस सारदा।।

सब उदार सब पर उपकारी। विप्र चरन सेवक नर-नारी।।

एक नारि व्रत रत सब झारी।

ते मन वच क्रम पति हितकारी’’।।3

इसलिए आज भी किसी राज्य या देष में सुख शांति रहती है, तो उसे राम राज्य की संज्ञा दी जाती है। तुलसी दास जी अपनी रामकथा को कथोपकथन से विस्तार देते हुए कहते हैं और चाहते हैं कि वह गंगा की तरह सारे संसार को पवित्र करने वाली सिद्ध हो –

पुन्छेहु रघुपति कथा प्रसंगा।

सकल लोक जग पावनि गंगा।।4

इस प्रकार श्रीरामचन्द्र जी लोक के राम भक्तों के लिए मनुष्य का शरीर धारण करके संकट सहे। साधु संतों और आम जन मानस को सुखी कर सही राह दिखाया। तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि राम से बढ़कर राम का नाम है। इसलिए प्रेम पूर्वक नाम का जाप करने से भक्त जन सहज ही आनंद और मोक्ष के स्थान को प्राप्त करते हैं-

’’राम भगत हित पर तनु धारी।

सहि संकट किए साधु सुखारी।।

नामु सप्रेम जगत अनयासा।

भगत होहि मुद मंगल वासा।।5

इसलिए हमें सदैव अपने और अपनों के हित के लिए सदकार्यों के साथ-साथ राम नाम का जाप करते रहना चाहिए। बड़े ही सौभाग्य से एक मनुष्य को मानव शरीर मिलता है, तो हमें अपने जन्म को सद्कार्य में लगाते हुए राम नाम के ध्यान में लगे रहना चाहिए।

’’बड़े भाग मानुष तन पावा।

सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।

पाई न जेहिं परलोक संवारा’’।।6

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ के लोक अनुष्ठान और लोक जीवन पूर्णतः राममय है। यहां के लोकगीतों, लोक नाट्यों, लोक अनुष्ठानों यथा- जन्म मृत्यु, विवाह आदि, लोक पर्व एवं उत्सवों में राम आविच्छन्न रूप से समाये हुए हैं। राम कि छवि यहाँ जननायक, लोकनायक, मर्यादा पुरुवोत्तम की है। राम यहाँ आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श राजा के रूप में लोक हृदय में वास करते हैं। अनेक अवसरों पर राम के भजन, गीत, मंत्र आदि का पाठ होना उनके साथ राम के जुड़ाव की अनूठी कहानी है। लोक जीवन को राम के प्रति जुड़ाव आत्मीयता, करुणा सहृदयता और भावनात्मकता का प्रतीक है। छत्तीसगढ के ग्रामीण और जनजातीय संस्कृति में राम केवल पूजा या आस्था का केन्द्र नहीं है बल्कि नैतिक आदर्शों, जीवन मूल्यों, सामाजिक जीवन  आदि को भी गहराई से प्रभावित करता है। राम के जीवन के आदर्श लोक कथाओं, लोकगीतों के माध्यम से एक पीढी से दूसरी पीढी तक पहुंचते है और सामाजिक समरसता का संदेश देते हैं। इस प्रकर छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में राम की उपस्थिति एक जीवन सांस्कृतिक प्रक्रिया है।

                          ।। राम राम ।।

संदर्भ ग्रन्थ-

  1. संपा. यदु डॉ. मन्नु लाल, छत्तीसगढ़ में राम, छत्तीसगढ़ अस्मिता प्रतिष्ठान, कृष्ण सखा प्रेस, दूरी हटरी रायपुर, प्र.सं. 2008 पृश्ठ 126
  2. झा शोभाकांत, छत्तीसगढ़ में रमे राम: एक झांकी, तुलसी मानस भारती, लोक भारती प्रकाषन म.प्र. पृष्ठ 131
  3. संपा. यदु डॉ. मन्नुलाल, छत्तीसगढ़ में राम, छत्तीसगढ़ी अस्मिता प्रतिष्ठान, कृष्णसखा प्रेस, दूरी हटरी रायपुर प्र.सं. 2008 पृष्ठ 89
  4. यादव डॉ.राजन, तुलसी तरंग, शलभ पब्लिषिंग हाउस मेरठ, प्र.सं 2012 पृष्ठ 18
  5. वही पृष्ठ 32
  6. वही पृष्ठ 135
  7. कौशिक, डॉ. जय नारायण, रामकथा और लोक साहित्य, हिन्दी बुक सेंटर नई दिल्ली, प्र.सं. 1996
  8. संपा. परिहार डॉ. श्री राम, राम वन गमन की साहित्यिक निष्पति, अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास नई दिल्ली प्र.सं. – 2015
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